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Kanupriya Hindi textbook for degree students

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ऐसे तो क्षण होते ही हैं जब लगता है कि इतिहास की दुर्दान्त शक्तियाँ अपनी निर्मम गति से बढ़ रही हैं, जिन में कभी हम अपने को विवश पाते हैं, कभी विक्षुब्ध, कभी विद्रोही और प्रतिशोधयुक्त, कभी वल्गाएँ हाथ में लेकर गतिनायक या व्याख्याकार, तो कभी चुपचाप शाप या सलीब स्वीकार करते हुए आत्मबलिदानी उद्धारक या त्राता.....लेकिन ऐसे भी क्षण होते हैं जब हमें लगता है कि यह सब जो बाहर का उद्वेग है-महत्त्व उसका नहीं है-महत्त्व उसका है जो हमारे अन्दर साक्षात्कृत होता है-चरम तन्मयता का क्षण जो एक स्तर पर सारे बाह्म इतिहास की प्रक्रिया से ज्यादा मूल्यवान् सिद्ध होता है, जो क्षण हमें सीपी की तरह खोल गया है-इस तरह कि समस्त बाह्म-अतीत, वर्तमान और भविष्य-सिमट कर उस क्षण में पूँजीभूत हो गया है, और हम हम नहीं रहे !प्रयास तो कई बार यह हुआ कि कोई ऐसा मूल्यस्तर खोजा जा सके जिस पर ये दोनों ही स्थितियाँ अपनी सार्थकता पा सकें-पर इस खोज को कठिन पा कर दूसरे आसान समाधान खोज लिये गये हैं-मसलन इन दोनों के बीच एक अमिट पार्थक्य रेखा खींच देना-और फिर इस बिन्दु से खड़े होकर उस बिन्दु को, और उस बिन्दु से खड़े होकर इस बिन्दु को मिथ्या भ्रम घोषित करना।......या दूसरी पद्धति यह रही है कि पहले वह स्थिति जी लेना, उस की तन्मयता को सर्वोपरि मानना- और बाद में दूसरी स्थिति का सामना करना, उस के समाधान की खोज में पहली को बिलकुल भूल जाना। इस तरह पहली को भूलकर दूसरी और दूसरी से अब फिर पहली की ओर निरन्तर घटते-बढ़ते रहना-धीरे-धीरे इस असंगति के प्रति न केवल अभ्यस्त हो जाना-वरन् इसी असंगति को महानता का आधार मान लेना। (यह घोषित करना कि अमुक मनुष्य या प्रभु का व्यक्तित्व ही इसीलिए असाधारण है कि वह दोनों विरोधी स्थितियाँ बिना किसी सामंजस्य के जी सकने में समर्थ हैं।)लेकिन वह क्या करे जिसने अपने सहज मन से जीवन जिया है, तन्मयता के क्षणों में डूब कर सार्थकता पायी है, और जो अब उद्धघोषित महानताओं से अभिभूत और आतंकित नहीं होता बल्कि आग्रह करता है कि वह उसी सहज की कसौटी पर समस्त को कसेगा।ऐसा ही आग्रह है कनुप्रिया का !लेकिन उस का यह प्रश्न और आग्रह उस की प्रारम्भिक कैशोर्य-सुलभ मनःस्थितियों से ही उपज कर धीरे-धीरे विकसित होता गया है। इस कृति का काव्यबोध भी उन विकास स्थितियों को उन की ताजगी में ज्यों का त्यों रखने का प्रयास करता चलता है। पूर्वराग और मंजरी-परिणय उस विकास का प्रथम चरण, सृष्

1 year ago
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